Thursday, December 14, 2017

गाँव कनेक्शन-एक आशा

जूते फटे पहन कर ,आसमान पर चढ़े थे
सपने मेरे हरदम औकात से बड़े थे....

हिंदी के बेहद लोकप्रिय और नवगीतों के जाने माने हस्ताक्षर मनोज मुंतिसर की ये पंक्तियां मुझे एक चेहरे की तरफ खींच ले जाती हैं,जो इन दिनों मेरी चेतना के सहयात्री हैं जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ नीलेश मिश्रा की। एक ऐसा नाम जो आज की पत्रकारिता में बहुत प्रासंगिक हो गया है।
नीलेश जी को मैंने पहली बार रेडियो पर सुना 'यादों का इडियट बॉक्स' एसा प्रोग्राम जो मेरी व्यस्त दिनचर्या के बाद रात को बेहद सुकून देने वाला होता है।मिश्रा जी कहाँनियों को जिस शैली में प्रस्तुत करते है वो आपको एक सैर पर ले जाते है। आजकल कहानियों से भी ज्यादा मुझे जिस चीज ने बेहद प्रभावित किया है वो है उनकी पत्रकारिता। एक ऐसे दौर में जब पत्रकारिता को सुपारी जर्नलिज्म की संज्ञा दी जाने लगी है ,भक्तिकाल अपने चरम पर है,पत्रकारिता संस्थानों की बुनियाद बेहद कमजोर हो गयी है,ऐसे समय में अपनी जमा पूंजी को दॉव पर लगाकर ' गाँव कनेक्शन' नाम के एक ऐसे संस्थान की स्थापना की है जो एक उम्मीद की किरण है।समाज के सबसे महत्वपूर्ण तबके को एक आवाज देने का काम यह संस्थान कर रहा है।मैं बहुत आशान्वित हूँ और बेहद बल मिल रहा है कि आज भी हमारे देश मे लोग सच्चाई और ईमानदारी का साथ देते है जिसकी मिशाल है गांव कनेक्शन!
हाल ही में पाँच साल पूरे होने पर में इसकी समस्त टीम को बधाई देता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि पूरा देश इस चेतना का सहभागी बनेगा।
जय जवान, जय किसान
जय हिंद
आपका
प्रवल यादव

Sunday, December 3, 2017

दिव्यांगजनो को समर्पित मेरी कविता

अंतरास्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस के अवसर पर ,मेरे द्वारा रचित एक कविता सभी दिव्यांग साथियों को समर्पित ✍✍✍✍✍✍👇
                   
                  【मेरे हिस्से का आकाश】

मैं जो भी हूँ जैसा भी हूँ अपने बजूद को पहचानता हूँ,
आपको भी मेरी पहचान का सम्मान करना होगा|
मेरे हिस्से का आकाश मुझे देना होगा||

मेरे पैरों में भी ऊंची उड़ान का हौसला है,
माँ-बाप और देश को गौरवांवित करने का इरादा है|
विस्वास दिलाता हूँ, मैं भी कुछ कर दिखलाऊंगा ||
मुझे कोई खैरात नहीं ,मेरा अधिकार देना होगा|
मेरे हिस्से का आकाश••••••••

मेरे प्रयास हो सकता है कुछ धीमे से लगें,
पर अनवरत चल आगे बढ़ने की ठानी है|
बनकर मेरा हमराही,मुझे बस हौसला देना होगा,
मेरे हिस्से का आकाश•••••••

सब पढें, सब बढें
फिर मेरी राह में ही क्यों रोडे अड़े
मेरे स्कूल की सीढ़ियां मुझे डराना चाहती हैं|
सरकारों सुनो!मुझे भी शिक्षा का अधिकार देना होगा,
मेरे हिस्से का आकाश••••••••

गर कुछ करना ही है,
तो मेरे लिए ये सारी बंदिशे हटा दो|
शब्दावली से लंगड़ा,गूँगा, पागल जैसे शब्द मिटा दो,
सुगम्य समाज, समान अवसर ,रोज़गार का अधिकार देना होगा|
मेरे हिस्से का आकाश मुझे देना होगा||
★★★★★★★★★★★★★★★★★
©प्रवल यादव
   विशेष शिक्षक