कल से एक खबर ने बहुत परेशान किया हुआ है,दिल बैठ सा गया है।ऐसी रिपोर्ट्स आ रही हैं कि रेयॉन स्कूल में एक छात्र प्रधुम्न की निर्मम हत्या के बाद शिक्षिकाओं ने यह सोच कर उसे उठाने से मना कर दिया कि उनकी साड़ी गंदी हो जाएगी। मैं जितनी बार भी इस खबर की रिपोर्टिंग टीवी चैनलों पर देखता हूँ अपने आंशू रोक नहीं पाता।एक माता-पिता जो अपनी आँखों मे हजारों नवीन सपनों के साथ अपने कलेजे को स्कूल तक कितनी उम्मीदों के साथ छोड़कर आये होंगें ।उनके सारे सपने विद्यालय प्रशासन की एक लापरवाही के कारण एक पल में ही चकनाचूर हो गए।उस माँ की हालत को कैसे देखा जाए जो बिलखते हुए सिर्फ यही बोलती है कि 'मुझे बस न्याय दिला दो'। शिक्षक होने के नाते मैं यह बिल्कुल भी विस्वास नहीं कर सकता कि हम इतने असंवेदनशील हो सकते हैं।लेकिन इतना तो जरूर है कि जब से शिक्षा के क्षेत्र में इन पूंजीपतियों ने कदम रखा है,शिक्षा सिर्फ एक बाजार बन के रह गयी है,आज इसके दाम तय होने लगे हैं। निसंदेह बाजार की इस परंपरा ने शिक्षकों के स्तर को भी गिराया है।आज शिक्षक बाजार के अधीन होकर अपने कर्तव्यों की बजाय स्कूल चलाने वाले उस बनिये के प्रति ज्यादा जबाबदेह हो गए हैं। शिक्षा और स्वास्थय सेवाओं का बाजारीकरण हमारी नपुंसक सरकारों की विफलताओं का परिणाम है।जो काम केंद्र और राज्यों की सरकारों का है ,जिनके लिए इन निकम्मी सरकारों को सीधे तौर पर जबाबदेह होना चाहिए उसे इन लोगों ने शिक्षा के कथित दलालों के हवाले कर दिया है।कहीं न कहीं सीधे तौर पर इस्से इन नेताओं के हित जुड़े हुए हैं।
हमारे देश में गुरु-शिष्य की एक पावन परंपरा रही है।एक बच्चा अपने माँ-बाप से ज्यादा अपनी टीचर की बात पर भरोसा करता है।वह बच्चा टीचर के अंदर भी अपने माता-पता जैसा ही दुलार एवं अपनत्व देखता है और इस परंपरा की अनगिनत मिसालें आज भी देखने को मिलती हैं।आखिर फिर किन बजहों से हम ऐसे होते जा रहे हैं। जरा गौर से सोंचें कि हमारे देश के टीचर्स ट्रेनिंग संस्थानों की क्या हालत है?क्या ये संस्थान एक अच्छे शिक्षक को तैयार कर पा रहे हैं ? अगर कुछ एक प्रतिशत निकाल दें तो क्या ये संस्थान मानसिक, भावनात्मक, बैचारिक, शैक्षणिक तौर पर एक सशक्त अध्यापक का निर्माण करने में सक्षम हैं? मुझे लगता है कि एक राष्ट्र को अपनी सारी सक्ति एक अच्छे शिक्षक समाज को बनाने में लगा देनी चाहिए तभी वे किसी राष्ट्र के भव्य निर्माण की आधारशिला रख पाएंगे और सच मे राष्ट्र निर्माता होंगे। अपनी लोगों को सर्वश्रेष्ठ शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने की सीधी जबाबदेही इन चुनी हुई सरकारों की होनी चाहिए।
इस घटना को प्रतीक बनाकर हमें इस भ्रस्टाचारी सिस्टम पर नकेल कसनी होगी। एक शिक्षक के तौर पर भी हमें अपना लगातार मूल्यांकन करते रहना चाहिए तभी हम एक आदर्श समाज का निर्माण कर पाएंगे। ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो इसके लिए जरूरी है कि दोषियों को कठोर से कठोर सजा दी जाए और कम से कम शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों से इन दलालों की छुट्टी की जाए।
"हालत आज की देखकर आँख मेरी भर गई,लगता है मेरे देश को किसी की नजर लग गयी"